सड़क पर रहने वाले कुत्ते आतंक नहीं हैं — आतंक वो समाज है जो मारना सीख गया, पर दया करना भूल गया

हर दिन, किसी न किसी गली में कोई कुत्ता भूख से तड़पता है। कहीं किसी इंसान के हाथों पिट रहा होता है। कहीं किसी कॉलोनी के लोग उसे जहर दे देते हैं। और फिर वही समाज, जो उसे दुत्कारता है, कहता है — “कुत्ते काटते हैं।”

अरे इंसान! जब तूने उसके लिए एक रोटी नहीं छोड़ी, सिर्फ लात और पत्थर दिए — तो वो प्यार करेगा या जिंदा रहने के लिए लड़ेगा?

भूख से बिलबिलाते जानवरों से शांति की उम्मीद मत करो

जब तुम बच्चों को सिखाते हो कि “कुत्तों से दूर रहो, काटते हैं”, क्या कभी उन्हें ये सिखाया कि भूखे को रोटी दो, डरे को प्यार दो?

तुम्हारी क्रूरता ने उन्हें डरा दिया है, उन्हें इंसानों पर भरोसा नहीं रहा — और होना भी नहीं चाहिए! क्योंकि इंसानों ने उन्हें सिर्फ मार, तिरस्कार, और घृणा ही दी है।

कुत्ते काटते नहीं हैं — तुम्हारी संवेदनहीनता उन्हें इस मोड़ पर ले जाती है।

अगर बच्चों ने दया नहीं सीखी, तो वे सिर्फ ‘काबिल’ बनेंगे, इंसान नहीं

आज तुम बच्चों को केवल डर, दूरी और नफरत सिखा रहे हो। कल को वही बच्चा, एक जानवर के लिए नहीं रुकेगा, और परसों को एक इंसान की तकलीफ पर भी आंख नहीं झपकाएगा।

अगर हम अगली पीढ़ी को दया, करुणा और इंसानियत नहीं सिखा सके — तो हम उन्हें बस चलती-फिरती मशीनें बना रहे हैं।

अधिकारियों की ज़हरीली भाषा = समाज का पतन

जब नगर निगम या स्थानीय अधिकारी सड़क के कुत्तों को “समस्या”, “खतरा” या “निपटाने योग्य” कहने लगें, तो समझ लीजिए कि ये इंसान नहीं, सत्ता के रोबोट हैं।

ये वही समाज है जो अपनी विफलताओं को छुपाने के लिए मासूम जानवरों को बलि का बकरा बनाता है।

कोई पूछे — जब सरकार नसबंदी, टीकाकरण, और देखभाल नहीं कर पा रही, तो गुनाह किसका है? कुत्ते का, या तुम्हारा?

हर पत्थर मारने वाले को आईना दिखाना ज़रूरी है

जो लोग कहते हैं कि “कुत्ते गंदे हैं, हटाओ इनको”, उनसे पूछो — तुम्हारे अंदर कितना इंसान बचा है?

गंदगी कुत्तों में नहीं, तुम्हारी सोच में है। जो जानवर भूखा है, घायल है, उसे मारकर तुम बहादुर नहीं — डरपोक हो।

अब और चुप नहीं रहा जाएगा!

हमें चाहिए वो समाज जो सड़कों पर रहने वाले जानवरों को दुश्मन नहीं, ज़िम्मेदारी माने।

हमें चाहिए वो लोग जो आवाज़ उठाएं जब कोई जानवर पीटा जाए, ज़हर दिया जाए या बेवजह उठवा लिया जाए।

कुत्तों की आक्रामकता उनकी नहीं, हमारी बनाई हुई है। और अब समय आ गया है कि हम अपनी गलती को स्वीकारें और उसे सुधारें।


याद रखो — जो समाज अपने सबसे कमज़ोर जीवों की रक्षा नहीं करता, वह समाज मर चुका होता है।

अगर हम इंसान हैं, तो हमें इंसानियत निभानी होगी। नहीं तो कल को ये कुत्ते नहीं काटेंगे — हमारी अपनी नफरत हमें खा जाएगी।

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